Thursday, December 20, 2012

कोई है यहाँ कहाँ(koi hai yahan kahan)

छोटी सी ख्वाहिशें , ले चली दूर मुझे,
आँखों में सपने, कुछ है सजे,
सपने बाट सकूं, कोई है यहाँ कहाँ!

मेरी मंजिलें, अभी दूर बहुत,
सामने, घनी रात बहुत,
सोचता हूँ, कोई पास हो मेरे.
जिसे अपना हाथ बढ़ा सकूं,
हाथ थाम सके, कोई है यहाँ कहाँ!


वक़्त की गर्मी से निकले, मेरे कई अरमान,
अरमानो को समेट, आग में जला सकूं,
आग जैसे चीज़, कोई है यहाँ कहाँ!


                                                   -ड्यूक (विनीत आर्य)

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