तेरे चेहरे का नूर,
मेरे अल्फाजों में बयां होता है.
आती है सूरज कि रौशनी,
नाम बदल रात को,
ये चाँद को कहाँ पता होता है.
जब देखता है चाँद तुझे एक टूक,
इस बात का एहसास,
मेरी ख़ामोशी में बयां होता है.
रोशन कर देता है जब ये आफ़ताब,
तेरी कशिश को मेरे जिया में.
तेरी हर अदा मेरे बातों में बयां होती है.
शबनमी होठों पर अंगड़ाई लेती पानी कि एक बूँद मुस्कुराती है.
वो जलाती है जिया किसी का, उसको यह ख़बर कहाँ होती है.
जब बूँद ठहर तेरे होठों से रपट जाती है,
इस बात का सुकून,
मेरे दिल-ए-नवाजी में बयां होता है.
--विनीत आर्य
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