हज़ारों ख्वाहिशें दिल में लिए चलता हूँ
जाने कब रुक जाये सफर ज़िन्दगी का
सारी यादें साथ लिए चलता हूँ
ग़ज़लें नहीं आप बीती है ये
सारे नग़में गुनगुनाते-गाते चलता हूँ
--विनीत आर्य
Monday, December 3, 2012
अपनी सी ये जिंदगी ( Apni Si Ye Zindgi)
टूटी - टूटी, है मेरी ये जिंदगी,
देखोगे जब तुम इसे करीब से,
पाओगे तुम, अपनी सी ये जिंदगी| -2
ख्वाबो में रहता हूँ,
ख्वाब बुनता हूँ,
अक्सर, ये ख्वाब, टूट जाते है|
दर्द भी होता है,
दिल भी रोता है,
कुछ खोया सा, लगता है, इस जिंदगी को|
देखोगे जब तुम इसे करीब से,
पाओगे तुम, अपनी सी ये जिंदगी.
घर से, निकलता हूँ,
कुछ दूर चलता हूँ,
अक्सर, ठोकर लग, गिरता हूँ,
मुस्कुरा कर रोता भी हूँ,
पलकों में पानी ला, हँसता भी हूँ,
आखिर में, जी भर, कोसता हूँ, इस जिंदगी को|
देखोगे जब तुम इसे करीब से,
पाओगे तुम, अपनी सी ये जिंदगी|
टूटी - टूटी, है मेरी ये जिंदगी,
देखोगे जब तुम इसे करीब से,
पाओगे तुम, अपनी सी ये जिंदगी|
-ड्यूक (विनीत आर्य)
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