Tuesday, January 15, 2013

मोरी अलबेली सी बातें (Mori Albeli Si Baatein)

मोरी अलबेली सी बातें,
काहे करे परेशान तोहे?
क्या इश्क दा रोग लागा मोसे?
या कोई बात सताए?


मोरी सजीली सी निगाहें,
काहे करे परेशान तोहे?
क्या छुपये तोरे ये नैना मोसे?
या कोई सवाल सताए?


मोरी नरम सी साँसे,
काहे करे परेशान तोहे?
क्या लगन सी लगी मोसे?
या कोई ज़ज्बात सताए?


मोरी धीमी सी मुस्कान,
काहे करे परेशान तोहे?
क्या लज्जाये तोहे मोसे?
या कोई ख़याल सताए?

 
मोरी अलबेली सी बातें,
काहे करे परेशान तोहे?
क्या इश्क दा रोग लागा मोसे?
या कोई बात सताए?
                               

                                     -विनीत आर्य

Tuesday, January 1, 2013

क्या कहें हम उन्हें (Kya Kahein Hum Unhe)

जब बड़ी खामोशी से,
देखते है वो हमें,
तब समझ न आये,
क्या कहें हम उन्हें!

बात सिर्फ इश्क की होती तो,
मान भी जाते,
वो बेवफा निकले तो,
क्या कहें हम उन्हें!

रंज मुझे उनकी बेवफाई से नहीं,
गम मुझे उनकी जुदाई का है.
शायद अच्छा होता अगर,
जुदा हो कर मर जाते हम.
मगर जी गए है तो,
क्या कहें हम उन्हें!

इतना आसान होता अगर,
इश्क कर भूल जाना,
तो कब के  भूल गए होते.
वो हमें नासमझ समझे तो,
क्या कहें हम उन्हें!

किसी दिन किसी मोड़ पर,
वो हमें आ मिले,
दे इश्क की दुहाई वो,
इश्क का क़तल करने को कह गए हमें,
बेवफा, अगर हम क़ातिल होते,
तो कब का क़तल कर दिए होते.
वो हमारे इश्क को न समझे तो,
क्या कहें हम उन्हें!
                                        -विनीत आर्य