पानी से भीगी उस टहनी को देखो,
उसकी आँखों से बहते आँसुओं को देखो,
हवा की टहनी से गुस्ताखी को देखो|
पीपल के पत्ते पर ठहरी उस बूँद को, पत्ते से दूर करता हूँ|
उसकी आँखों से बहते आँसुओं को देखो,
हवा की टहनी से गुस्ताखी को देखो|
पीपल के पत्ते पर ठहरी उस बूँद को, पत्ते से दूर करता हूँ|
गुस्ताख हूँ, गुस्ताखियाँ करता हूँ|
उन नन्हे बच्चो को रेत के घर बनाते देखो,
उनकी झूठी- मूठी कहानी को देखो,
समुंदर पर इठला कर चलती है लहरें,
लहरों की बच्चो से गुस्ताखी को देखो|
साहिल पर पड़े पत्थर को फेंक, समुंदर को चोटिल करता हूँ|
उनकी झूठी- मूठी कहानी को देखो,
समुंदर पर इठला कर चलती है लहरें,
लहरों की बच्चो से गुस्ताखी को देखो|
साहिल पर पड़े पत्थर को फेंक, समुंदर को चोटिल करता हूँ|
गुस्ताख हूँ, गुस्ताखियाँ करता हूँ|
आसमान को धरती के लिए हाथ फैलाते देखो,
उसी उदासी को उस के नीले रंग में देखो,
आसमान में उड़ते परिंदे, जसे पहरा लगा रहे हो,
परिंदों की दो प्रेमियों से गुस्ताखी को देखो|
हवा में उड़ती बुलबुल को, मैं क़ैद करता हूँ|
गुस्ताख हूँ, गुस्ताखियाँ करता हूँ|
ऊपर रंग बदलते चाँद को देखो,
उसकी नारंगी सी चांदनी को देखो,
देखता है जब वो इस धरा को,
बादल की चाँद से गुस्ताखी को देखो|
बिना तेरी इजाज़त, प्यार मैं तुम से करता हूँ|
उसकी नारंगी सी चांदनी को देखो,
देखता है जब वो इस धरा को,
बादल की चाँद से गुस्ताखी को देखो|
बिना तेरी इजाज़त, प्यार मैं तुम से करता हूँ|
गुस्ताख हूँ, गुस्ताखियाँ करता हूँ|
-ड्यूक (विनीत आर्य)
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