आज वो आये है...
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ना जाने क्या तलाशते है वो।
आज वो आये है,
ना जाने क्या जुस्तजू लाये है वो।
शायद उन्हें जिनकी तलाश है,
अब यहाँ नहीं रहते वो।
एक खत दिया था उन्होंने जाने से पहले,
शायद वो खत आपका हो।
खत वो भीगा-भीगा था,
शायद उनकी महक इसमें आज भी बरकार हो।
सुलझाते है वो लटें अपनी,
वो जो सुलझी नज़र से,
कभी हमें देखे नहीं।
मांगते है,
अपना हक़ वो हमसे,
जो कभी ना हमने कहा,
और ना कभी वो ज़िक्र किये।
अब कोई ये कैसे समझाए उनको,
राख से घर नहीं सजाये जाते।
हम जले थे कभी,
उनकी याद में,
राख ही राख रह गए हैं अभी।
उड़ता अंचल तुम अपना थाम लो,
मैं नहीं हूँ वो।
है ये हवा का झोंका,
इसकी रविशों को मेरा नाम ना दो।
कोई उम्मीद ना रखना तुम,
मैं बस एक साया हूँ,
दिन ढलते ही छिप जाएगा।
कोई बंदिशें ना रखना तुम,
ये रिश्ता एक कच्चा धागा है,
इसे तोड़ देना तुम।
--विनीत आर्य
अर्थ:
जुस्तजू: Desire, quest
रविश: Behaviour
रविश: Behaviour
lovely poem
ReplyDelete:-)
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