आज सोचा के तुम्हें अपनी ग़ज़ल बनाये हम
आज सोचा के तुम्हें अपनी ग़ज़ल बनाये हम।
तुमको बताएं तुम्हें दिल में छिपाए है हम।
तुम्हारी मुलाकातों से, दिल खिल-खिलाता है।
तुम्हें देख कर मेरा हर अंग मुस्कुराता है।
तुम ना होते तो बड़ा मुस्किल होता ये सफर।
शुक्रिया साथ मुझे ले चलने के लिए।
सारे ज़ज़्बात जुबान तक ना ला सकूँ मैं।
शुक्रिया मेरी आँखे पढ़ कर समझने के लिए।
आज सोचा के तुम्हारी बांहों में हो हम।
और तुमको सारी रैना कहें अपनी ग़ज़ल हम।
--विनीत आर्य
तुमको बताएं तुम्हें दिल में छिपाए है हम।
तुम्हारी मुलाकातों से, दिल खिल-खिलाता है।
तुम्हें देख कर मेरा हर अंग मुस्कुराता है।
तुम ना होते तो बड़ा मुस्किल होता ये सफर।
शुक्रिया साथ मुझे ले चलने के लिए।
सारे ज़ज़्बात जुबान तक ना ला सकूँ मैं।
शुक्रिया मेरी आँखे पढ़ कर समझने के लिए।
आज सोचा के तुम्हारी बांहों में हो हम।
और तुमको सारी रैना कहें अपनी ग़ज़ल हम।
--विनीत आर्य