हज़ारों ख्वाहिशें दिल में लिए चलता हूँ जाने कब रुक जाये सफर ज़िन्दगी का सारी यादें साथ लिए चलता हूँ ग़ज़लें नहीं आप बीती है ये सारे नग़में गुनगुनाते-गाते चलता हूँ--विनीत आर्य
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