कुछ किताबों को पढ़ने में वक़्त तो लगता है
कुछ किताबों को पढ़ने में वक़्त तो लगता है।
क्या राज़ दिल में छिपाएं है खुलने में वक़्त तो लगता है।
निकला था घर से हसरतों की तलाश में,
देर हो भी गयी तो क्या बात हुई घर लौटने में वक़्त तो लगता है।
पेड़ की ऊँची टहनी को छूना बच्चों का खेल सा लगता है।
कुछ मन में मचलते ख्यालों को ज़ाहिर करने में वक़्त तो लगता है।
खोया बहुत अब सँवारने में वक़्त तो लगता है।
आँखें नम हुई उनके इंतज़ार में, सूखने में वक़्त तो लगता है।
कुछ किताबों को पढ़ने में वक़्त तो लगता है...
--विनीत आर्य
Note: This ghazal can be consider as an extension or inspired from Jagjit Singh 's famous ghazal "Pyaar ka pehla khat".