ज़िक्र क्यों है तेरा मेरी बातों में,
ये समझाना आसान नहीं ।
मान लो तुम इसे खुदा कि मर्जी,
मेरा रुकना मेरे बस में नहीं।
फुरक़त-ए-एहसास जो मिला तेरी बातों में,
उसे यूँ भूल जाना मुमकिन नहीं,
रोक लूं खुद को मैं कैसे तुम्हें चाहने से,
मेरा रुकना मेरे बस में नहीं ।
इत्तफ़ाक़ कहो या कहो मेरी नादानी,
ग़मगीन थी मेरी ज़िन्दगी, रौनक तो तेरे आने से आई,
खोया हूँ तेरी तसव्वुर-ए-मदहोशी में,
मेरा होश में आना अब मुमकिन नहीं, हाँ मुमकिन नहीं।
--विनीत आर्य
ये समझाना आसान नहीं ।
मान लो तुम इसे खुदा कि मर्जी,
मेरा रुकना मेरे बस में नहीं।
फुरक़त-ए-एहसास जो मिला तेरी बातों में,
उसे यूँ भूल जाना मुमकिन नहीं,
रोक लूं खुद को मैं कैसे तुम्हें चाहने से,
मेरा रुकना मेरे बस में नहीं ।
इत्तफ़ाक़ कहो या कहो मेरी नादानी,
ग़मगीन थी मेरी ज़िन्दगी, रौनक तो तेरे आने से आई,
खोया हूँ तेरी तसव्वुर-ए-मदहोशी में,
मेरा होश में आना अब मुमकिन नहीं, हाँ मुमकिन नहीं।
--विनीत आर्य
अर्थ:
फुरक़त = Separation
इत्तफ़ाक़ = Accidental, By chance
ग़मगीन = Disconsolate
तसव्वुर = Hallucinate
इत्तफ़ाक़ = Accidental, By chance
ग़मगीन = Disconsolate
तसव्वुर = Hallucinate